द्वन्द सा है हर तरफ
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात में
सत्य की तलाश में
में हूँ सत्य की तलाश में

शिखर सी उन्मुक्त, अथाह सी गहरी
बन के विस्मैयाकारी खड़ी, जैसे जीवन की पहेली हे
कर रहा हूँ प्रय्तन बहने का
इस गतिमान से उल्लास में
क्षितिज है चलायमान या अंतहीन ये आसमान
बढ़ रहा हूँ जैसे एक पंछी सा आकाश में,
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में

जटिल है कहीं तो कहीं बाधारहित प्रवाह में
बहता हुआ सा ये जीवन समय के प्रकाश में
विविक्क्त है या है ये मिश्रित
मस्तिषक अब है स्पंदित मेरा इस वैचारिक वैय्तिकरण के आभास में,
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में

में भी हूँ चलायमान
पंचतत्वों के प्रनौड़ से
उत्पति से जगत - प्रस्थान तक हर शन में है जीवन विद्यमान
निरंतर एक अंत तक, झूझता हूँ स्थूल सा
अचंभित, वियग्र और कभी कठिनाइयों में चुभता जीवन शूल सा
अवसाद को संजो कर प्रसन्नता के तिरस्कार में
खुद से पूछ रहा हूँ अब
और आज एक नयी सुबह से जहाँ हर तरफ़ जीवन फिर से जैसे श्वाश ले रहा है
जी रहा था क्या में खुद के बहिष्कार में

द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में
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1 Response
  1. आज हर शख्स का यही हाल है………………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।


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