15
Mar 2012
A self-molested, indecisive and confined life,
nebulously clustered hoard of thoughts and a gleaming prism like amorphous me
I am nowhere in the labyrinth,
iridescent blade of grass
evinces me a scattered photon of light on my pupil
I am untrue, it seems
and,
I am nowhere in the labyrinth.
unharmonious pampared souls orchestrating the dance of mystic
and calling me to an unknown sanguine smile
today perhaps the last day of my dilemma
tomorrow I may get a way
but now,
I am nowhere in the labyrinth
nebulously clustered hoard of thoughts and a gleaming prism like amorphous me
I am nowhere in the labyrinth,
iridescent blade of grass
evinces me a scattered photon of light on my pupil
I am untrue, it seems
and,
I am nowhere in the labyrinth.
unharmonious pampared souls orchestrating the dance of mystic
and calling me to an unknown sanguine smile
today perhaps the last day of my dilemma
tomorrow I may get a way
but now,
I am nowhere in the labyrinth
25
Dec 2011
हवाओं की बंदिशौ पर टूटा एक सन्नाटा
और मैने चुपके से खो दिया है तुम्हे
फिक्र कर हर दिन जिया है
उम्मीद की सांसो को हर रोज पिया है
कब तक फैलेगा ये धुआं
कोशिशौ के आंसुओ में घुलता मेरे
चला जा रहा हूँ अब, दूर कहीं अनजान सा
दिल ने कितना अब रो दिया है तुम्हे...
हवाओं की बंदिशौ पर टूटा एक सन्नाटा
और मैने चुपके से खो दिया है तुम्हे...
05
Dec 2011
Tide…sometime stride
and inspite all the adversity
What makes you peer through the future
that I ask you
You are no exception
and,
would not make a compendium out of life; just a swamp of troubles at the last
but,
you are not here to live a life like this
just to compose, just to orchestrate or just to showcase…a spectrum of events
did you live it like a life…a life full of discrete vividness of immagination, liberty and unconditional optimism
that I ask you
It’s hard to see through troubles
but
it’s mere a perception that makes a difference
do not bend
bend your thoughts…in order to mould your destiny
live it like an alive
you get it,
you let it go
but,
do you feel like a pulsating life
that I ask you…
Feeling cold
sometimes warm
the substance of nature you just feel like this
everything is moving…like time
you encompass time
you are a part of this beatific nature
then why are you lagging behind?
why are you stale
that I ask you
and inspite all the adversity
What makes you peer through the future
that I ask you
You are no exception
and,
would not make a compendium out of life; just a swamp of troubles at the last
but,
you are not here to live a life like this
just to compose, just to orchestrate or just to showcase…a spectrum of events
did you live it like a life…a life full of discrete vividness of immagination, liberty and unconditional optimism
that I ask you
It’s hard to see through troubles
but
it’s mere a perception that makes a difference
do not bend
bend your thoughts…in order to mould your destiny
live it like an alive
you get it,
you let it go
but,
do you feel like a pulsating life
that I ask you…
Feeling cold
sometimes warm
the substance of nature you just feel like this
everything is moving…like time
you encompass time
you are a part of this beatific nature
then why are you lagging behind?
why are you stale
that I ask you
27
Jun 2010
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात में
सत्य की तलाश में
में हूँ सत्य की तलाश में
शिखर सी उन्मुक्त, अथाह सी गहरी
बन के विस्मैयाकारी खड़ी, जैसे जीवन की पहेली हे
कर रहा हूँ प्रय्तन बहने का
इस गतिमान से उल्लास में
क्षितिज है चलायमान या अंतहीन ये आसमान
बढ़ रहा हूँ जैसे एक पंछी सा आकाश में,
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में
जटिल है कहीं तो कहीं बाधारहित प्रवाह में
बहता हुआ सा ये जीवन समय के प्रकाश में
विविक्क्त है या है ये मिश्रित
मस्तिषक अब है स्पंदित मेरा इस वैचारिक वैय्तिकरण के आभास में,
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में
में भी हूँ चलायमान
पंचतत्वों के प्रनौड़ से
उत्पति से जगत - प्रस्थान तक हर शन में है जीवन विद्यमान
निरंतर एक अंत तक, झूझता हूँ स्थूल सा
अचंभित, वियग्र और कभी कठिनाइयों में चुभता जीवन शूल सा
अवसाद को संजो कर प्रसन्नता के तिरस्कार में
खुद से पूछ रहा हूँ अब
और आज एक नयी सुबह से जहाँ हर तरफ़ जीवन फिर से जैसे श्वाश ले रहा है
जी रहा था क्या में खुद के बहिष्कार में
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में
सोच से अज्ञात में
सत्य की तलाश में
में हूँ सत्य की तलाश में
शिखर सी उन्मुक्त, अथाह सी गहरी
बन के विस्मैयाकारी खड़ी, जैसे जीवन की पहेली हे
कर रहा हूँ प्रय्तन बहने का
इस गतिमान से उल्लास में
क्षितिज है चलायमान या अंतहीन ये आसमान
बढ़ रहा हूँ जैसे एक पंछी सा आकाश में,
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में
जटिल है कहीं तो कहीं बाधारहित प्रवाह में
बहता हुआ सा ये जीवन समय के प्रकाश में
विविक्क्त है या है ये मिश्रित
मस्तिषक अब है स्पंदित मेरा इस वैचारिक वैय्तिकरण के आभास में,
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में
में भी हूँ चलायमान
पंचतत्वों के प्रनौड़ से
उत्पति से जगत - प्रस्थान तक हर शन में है जीवन विद्यमान
निरंतर एक अंत तक, झूझता हूँ स्थूल सा
अचंभित, वियग्र और कभी कठिनाइयों में चुभता जीवन शूल सा
अवसाद को संजो कर प्रसन्नता के तिरस्कार में
खुद से पूछ रहा हूँ अब
और आज एक नयी सुबह से जहाँ हर तरफ़ जीवन फिर से जैसे श्वाश ले रहा है
जी रहा था क्या में खुद के बहिष्कार में
द्वंद सा है हर तरफ़
सोच से अज्ञात मे
सत्य की तलाश में
मैं हूँ सत्य की तलाश में
03
Aug 2009
मिट्टी उडा रहा हूँ
इस विचार में की हवा बह जाए
भाग रहा हूँ
इस तरह की जीवन कट जाए
पानी का बुलबुला अभी अभी टुटा है
मैंने उसे धकेल दिया लहरों में
जैसे
एक नई लहर बन जाए
में देखता हूँ हर तरफ़ मग्न सा
क्या में इन्सान हूँ
विषद के नृत्य में
प्रदीप्त सा उजाला है
झांक रहा है कौन मुझे
में देख रहा हूँ अधीर सा
उमंग का स्फुरण हुआ
और इस संक्रमण काल में
मन हो चला नग्न सा
क्या में इन्सान हूँ
सोच का प्रतिफल चाहता हूँ
श्रम का परिश्रम कौन करे
बस हर पल हो आनंदित उत्सव
ऐसे गुजरे मेरा जीवन ,
दुविधा में घिरा हूँ
भूत, भविष्य और वर्तमान
दिलासा देकर खुद को कहता हूँ
में अकेला नही, हर तरफ़ है ऐसा इन्सान ,
शोरगुल चारों तरफ़
व्यथीत भीड़ में खुद को
देखता हूँ एकाकी समग्र सा
क्या में इन्सान हूँ
इस विचार में की हवा बह जाए
भाग रहा हूँ
इस तरह की जीवन कट जाए
पानी का बुलबुला अभी अभी टुटा है
मैंने उसे धकेल दिया लहरों में
जैसे
एक नई लहर बन जाए
में देखता हूँ हर तरफ़ मग्न सा
क्या में इन्सान हूँ
विषद के नृत्य में
प्रदीप्त सा उजाला है
झांक रहा है कौन मुझे
में देख रहा हूँ अधीर सा
उमंग का स्फुरण हुआ
और इस संक्रमण काल में
मन हो चला नग्न सा
क्या में इन्सान हूँ
सोच का प्रतिफल चाहता हूँ
श्रम का परिश्रम कौन करे
बस हर पल हो आनंदित उत्सव
ऐसे गुजरे मेरा जीवन ,
दुविधा में घिरा हूँ
भूत, भविष्य और वर्तमान
दिलासा देकर खुद को कहता हूँ
में अकेला नही, हर तरफ़ है ऐसा इन्सान ,
शोरगुल चारों तरफ़
व्यथीत भीड़ में खुद को
देखता हूँ एकाकी समग्र सा
क्या में इन्सान हूँ
03
Aug 2009
I sell dreams but, I don't dream
He is ecstatic seeing me dolorous,
every time each spending moment imparting vitality to him,
though I am running dawn of rukus to din eventually,
He creats dream, and I sell Dreams
but,
I don't dream
Deft he I am inept,
sailing compassion glitter of unseen karma,
I am structured menifestation of matter, elusive, ethereal and abundant,
He is transcendental a rhythmic spontaneity,
entropy of governance,
He try to fill me dreams but,
I sell dreams I don't dream
I am happy a logophile,
orcastrating thoughts,
symphony of which remains naive all my life,
still i try every time I cry,
He keeps track of me,
built me, groom me,
I wonder, I forget and keep moving,
althougth,
I tell him,
You are God, I am fleeting,
I just sell dreams I don't dream
He is ecstatic seeing me dolorous,
every time each spending moment imparting vitality to him,
though I am running dawn of rukus to din eventually,
He creats dream, and I sell Dreams
but,
I don't dream
Deft he I am inept,
sailing compassion glitter of unseen karma,
I am structured menifestation of matter, elusive, ethereal and abundant,
He is transcendental a rhythmic spontaneity,
entropy of governance,
He try to fill me dreams but,
I sell dreams I don't dream
I am happy a logophile,
orcastrating thoughts,
symphony of which remains naive all my life,
still i try every time I cry,
He keeps track of me,
built me, groom me,
I wonder, I forget and keep moving,
althougth,
I tell him,
You are God, I am fleeting,
I just sell dreams I don't dream
27
Jul 2009
दूरियां नापते रहे और रास्ता कब ख़त्म हो गया पता ही नही चला,
अब तो बस चलना ही मंजिल है
उम्र बीत गई...जैसे भी
सर्द सी ठंडक गर्म सी आंच...तेरे एहसास की
और में जैसे एक पल पिघलता हूँ...फिर बन जाता हूँ
दो घड़ी बैठा हूँ तेरे ही प्रतिछाया के साथ
थक गया हूँ अब, लेकिन फिर भी में उठ चला
दूरिया नापते रहे ...
ये जिंदगी सा फैला आसमान, कमबख्त नीला ही सही
मेरी आँखों में तू
रोज नही अक्सर ही सही
चलो मिल कर चले ढूंढते है इस गगन का छोर
और तेरे नींद से जागने के बाद की वो हँसी,
रास्ता है अब
जिसमे,
बादल टूटे और पानी बरसा
कभी धुप की ख्वाहिश, पर तेज़ हवा का झोंका
आ चलें, आ चलें
में कह रहा हूँ ख़ुद से,
par तू तो नही बस में ही हूँ इस सफर में
अब लोग कहते है मुझ से
मंजिलो की तलाश में रास्ता सा तू बढ़ चला
दूरिया नापते रहे और रास्ता कब ख़तम हो गया पता ही नही चला ...
ईच्छाओं को अब जीना है
तेरे बिना ही सही
रुक गया हूँ अब, नए ख्वाहिशों की दौड़ नही
शांत है मन अब और साँस आने सी लगी
करता हूँ फिर से में आज गुजरे हुए समय को याद
कल था तू, में हूँ आज
बहने लगा में बहने लगा,
ऐसे की किनारा अब नजर आने लगा
भूत की कालिमा में छुपा वर्तमान अब दिख चला
दूरियां नापते रहे और रास्ता कब ख़तम हो गया पता ही नही चला ...
अब तो बस चलना ही मंजिल है
उम्र बीत गई...जैसे भी
सर्द सी ठंडक गर्म सी आंच...तेरे एहसास की
और में जैसे एक पल पिघलता हूँ...फिर बन जाता हूँ
दो घड़ी बैठा हूँ तेरे ही प्रतिछाया के साथ
थक गया हूँ अब, लेकिन फिर भी में उठ चला
दूरिया नापते रहे ...
ये जिंदगी सा फैला आसमान, कमबख्त नीला ही सही
मेरी आँखों में तू
रोज नही अक्सर ही सही
चलो मिल कर चले ढूंढते है इस गगन का छोर
और तेरे नींद से जागने के बाद की वो हँसी,
रास्ता है अब
जिसमे,
बादल टूटे और पानी बरसा
कभी धुप की ख्वाहिश, पर तेज़ हवा का झोंका
आ चलें, आ चलें
में कह रहा हूँ ख़ुद से,
par तू तो नही बस में ही हूँ इस सफर में
अब लोग कहते है मुझ से
मंजिलो की तलाश में रास्ता सा तू बढ़ चला
दूरिया नापते रहे और रास्ता कब ख़तम हो गया पता ही नही चला ...
ईच्छाओं को अब जीना है
तेरे बिना ही सही
रुक गया हूँ अब, नए ख्वाहिशों की दौड़ नही
शांत है मन अब और साँस आने सी लगी
करता हूँ फिर से में आज गुजरे हुए समय को याद
कल था तू, में हूँ आज
बहने लगा में बहने लगा,
ऐसे की किनारा अब नजर आने लगा
भूत की कालिमा में छुपा वर्तमान अब दिख चला
दूरियां नापते रहे और रास्ता कब ख़तम हो गया पता ही नही चला ...